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श्लोक 1.5.34  |
সূর্য-মণ্ডল যেন বাহিরে নির্বিশেষ
ভিতরে সূর্যের রথ-আদি সবিশেষ |
सूर्य - मण्डल येन बाहिरे निर्विशेष ।
भितरे सूर रथ - आदि सविशेष ॥34॥ |
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अनुवाद |
यह उस समरूप प्रकाश के समान है जो सूर्य के चारों ओर देखा जा सकता है। लेकिन सूर्य के भीतर रथ, घोड़े और सूर्य देवता के अन्य ऐश्वर्य हैं। |
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