श्री चैतन्य चरितामृत » लीला 1: आदि लीला » अध्याय 5: भगवान् नित्यानन्द बलराम की महिमाएँ » श्लोक 24 |
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| | श्लोक 1.5.24  | বাসুদেব-সঙ্কর্ষণ-প্রদ্যুম্নানিরুদ্ধ
সর্ব-চতুর্-ব্যূহ-অṁশী, তুরীয, বিশুদ্ধ | वासुदेव - सङ्कर्षण - प्रद्युम्नानिरुद्ध ।
सर्व - चतुर्व्यह - अंशी, तुरीय, विशुद्ध ॥24॥ | | अनुवाद | वासुदेव, संकर्षण, प्रद्युम्न और अनिरुद्ध - ये चार मौलिक चतुर्व्यह रूप हैं, जिनसे अन्य सभी चतुर्व्यह रूप प्रकट होते हैं। वे सभी पूर्ण रूप से पारलौकिक हैं। | | |
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