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श्लोक 1.5.23  |
মথুরা-দ্বারকায নিজ-রূপ প্রকাশিযা
নানা-রূপে বিলসযে চতুর্-ব্যূহ হৈঞা |
मथुरा - द्वारकाय निज - रूप प्रकाशिया ।
नाना - रूपे विलसये चतुर्व्यह हैञा ॥23॥ |
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अनुवाद |
भगवान श्री कृष्ण मथुरा और द्वारका में अपने मूल स्वरूप का प्रदर्शन करते हैं। वे अपने चतुर्व्यूह रूपों में विस्तार करके विविध प्रकार से लीलाओं का आनंद लेते हैं। |
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