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श्लोक 1.5.21  |
প্রেম-নেত্রে দেখে তার স্বরূপ-প্রকাশ
গোপ-গোপী-সঙ্গে যাঙ্হা কৃষ্ণের বিলাস |
प्रेम - नेत्रे देखे तार स्वरूप - प्रकाश ।
गोप - गोपी - सङ्गे याँहा कृष्णेर विलास ॥21॥ |
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अनुवाद |
लेकिन ईश्वर के प्रति प्रेम की दृष्टि से व्यक्ति इस स्थान के वास्तविक स्वरूप को देख सकता है, जहाँ भगवान कृष्ण चरवाहों और गोपियों के साथ अपनी लीलाएँ करते हैं। |
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