श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 1: आदि लीला  »  अध्याय 5: भगवान् नित्यानन्द बलराम की महिमाएँ  »  श्लोक 182
 
 
श्लोक  1.5.182 
দণ্ডবত্ হৈযা আমি পডিনু পাযেতে
নিজ-পাদ-পদ্ম প্রভু দিলা মোর মাথে
दण्डवत् हैया आमि पडिनु पायेते ।
निज - पाद - पद्म प्रभु दिला मोर माथे ॥182॥
 
अनुवाद
मैंने उनके चरणों में सिर झुकाकर नमस्कार किया और उन्होंने अपने कमल चरण मेरे मस्तक पर रख दिए।
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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