श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 1: आदि लीला  »  अध्याय 5: भगवान् नित्यानन्द बलराम की महिमाएँ  »  श्लोक 163
 
 
श्लोक  1.5.163 
মহা-প্রেম-ময তিঙ্হো বসিলা অঙ্গনে
সকল বৈষ্ণব তাঙ্র বন্দিলা চরণে
महा - प्रेम - मय तिंहो वसिला अङ्गने ।
सकल वैष्णव ताँर वन्दिला चरणे ॥163॥
 
अनुवाद
भावपूर्ण प्रेम में डूबकर वे मेरे आँगन में आ बैठे और सभी वैष्णव उनके चरणों में मस्तक झुकाकर प्रणाम करने लगे।
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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