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श्लोक 1.5.163  |
মহা-প্রেম-ময তিঙ্হো বসিলা অঙ্গনে
সকল বৈষ্ণব তাঙ্র বন্দিলা চরণে |
महा - प्रेम - मय तिंहो वसिला अङ्गने ।
सकल वैष्णव ताँर वन्दिला चरणे ॥163॥ |
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अनुवाद |
भावपूर्ण प्रेम में डूबकर वे मेरे आँगन में आ बैठे और सभी वैष्णव उनके चरणों में मस्तक झुकाकर प्रणाम करने लगे। |
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