श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 1: आदि लीला  »  अध्याय 5: भगवान् नित्यानन्द बलराम की महिमाएँ  »  श्लोक 15
 
 
श्लोक  1.5.15 
সর্বগ, অনন্ত, বিভু — বৈকুণ্ঠাদি ধাম
কৃষ্ণ, কৃষ্ণ-অবতারের তাহাঞি বিশ্রাম
सर्वग, अनन्त, विभु - वैकुण्ठादि धाम ।
कृष्ण, कृष्ण - अवतारेर ताहाजि विश्राम ॥15॥
 
अनुवाद
वह वैकुण्ठ धाम हर जगह व्याप्त है, अनंत है और परम पूर्ण है। यह भगवान कृष्ण और उनके अवतारों का निवास है।
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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