श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 1: आदि लीला  »  अध्याय 5: भगवान् नित्यानन्द बलराम की महिमाएँ  »  श्लोक 141
 
 
श्लोक  1.5.141 
যস্যাঙ্ঘ্রি-পঙ্কজ-রজো ’খিল-লোক-পালৈর্
মৌল্য্-উত্তমৈর্ ধৃতম্ উপাসিত-তীর্থ-তীর্থম্
ব্রহ্মা ভবো ’হম্ অপি যস্য কলাঃ কলাযাঃ
শ্রীশ্ চোদ্বহেম চিরম্ অস্য নৃপাসনṁ ক্ব
यस्याङ्घि - पङ्कज - रजोऽखिल - लोक - पालैर् मौल्युत्तमैधृतमुपासित - तीर्थ - तीर्थम् ।
ब्रह्मा भवोऽहमपि यस्य कलाः कलायाः श्रीशोद्वहेम चिरमस्य नृपासनं क्व ॥141॥
 
अनुवाद
“भगवान् श्रीकृष्ण के लिए किसी सिंहासन का क्या महत्त्व है? अनेक लोकों के स्वामी उनके चरणकमलों की धूल को अपने सिरों पर स्थान देते हैं जिन पर मुकुट सुशोभित हैं। वही धूल तीर्थस्थलों को पवित्रता प्रदान करती है। भगवान् ब्रह्मा, शिवजी, लक्ष्मी और मैं भी, जो उनके अंश हैं, शाश्वत रूप से अपने सिरों पर उस धूल को धारण करते हैं।”
 
 ✨ ai-generated
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2025 vedamrit. All Rights Reserved.