श्री चैतन्य चरितामृत » लीला 1: आदि लीला » अध्याय 5: भगवान् नित्यानन्द बलराम की महिमाएँ » श्लोक 135 |
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| | श्लोक 1.5.135  | কভু গুরু, কভু সখা, কভু ভৃত্য-লীলা
পূর্বে যেন তিন-ভাবে ব্রজে কৈল খেলা | कभु गुरु, कभु सखा, कभु भृत्य - लीला ।
पूर्वे येन तिन - भावे व्रजे कैल खेला ॥135॥ | | अनुवाद | वे कभी गुरु तो कभी मित्र और कभी दास बनकर श्री चैतन्य महाप्रभु की सेवा में रहते हैं, जैसे भगवान बलराम ने व्रज में इन तीन विभिन्न भावों में भगवान कृष्ण के साथ क्रीड़ा की थी। | | |
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