|
|
|
श्लोक 1.5.118  |
সহস্র বিস্তীর্ণ যাঙ্র ফণার মণ্ডল
সূর্য জিনি’ মণি-গণ করে ঝল-মল |
सहस्त्र विस्तीर्ण याँर फणार मण्डल ।
सूर्य जिनि’ मणि - गण करे झल - मल ॥118॥ |
|
अनुवाद |
उनके हजारों फैले हुए फन सूर्य को भी मात करने वाले चमचमाते रत्नों से सुशोभित रहते हैं। |
|
|
|
✨ ai-generated |
|
|