श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 1: आदि लीला  »  अध्याय 5: भगवान् नित्यानन्द बलराम की महिमाएँ  »  श्लोक 118
 
 
श्लोक  1.5.118 
সহস্র বিস্তীর্ণ যাঙ্র ফণার মণ্ডল
সূর্য জিনি’ মণি-গণ করে ঝল-মল
सहस्त्र विस्तीर्ण याँर फणार मण्डल ।
सूर्य जिनि’ मणि - गण करे झल - मल ॥118॥
 
अनुवाद
उनके हजारों फैले हुए फन सूर्य को भी मात करने वाले चमचमाते रत्नों से सुशोभित रहते हैं।
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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