श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 1: आदि लीला  »  अध्याय 5: भगवान् नित्यानन्द बलराम की महिमाएँ  »  श्लोक 105
 
 
श्लोक  1.5.105 
রুদ্র-রূপ ধরি’ করে জগত্ সṁহার
সৃষ্টি-স্থিতি-প্রলয — ইচ্ছায যাঙ্হার
रुद्र - रूप धरि करे जगत्संहार ।
सृष्टि - स्थिति - प्रलय - इच्छाय याँहार ॥105॥
 
अनुवाद
रुद्र के रूप में, वे सृष्टि का संहार करते हैं। इस प्रकार, सृष्टि, पालन और विनाश उनकी इच्छा से होते हैं।
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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