श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 1: आदि लीला  »  अध्याय 4: श्री चैतन्य महाप्रभु के प्राकट्य के गुह्य कारण  »  श्लोक 86
 
 
श्लोक  1.4.86 
কিম্বা, প্রেম-রস-ময কৃষ্ণের স্বরূপ
তাঙ্র শক্তি তাঙ্র সহ হয এক-রূপ
किम्वा, प्रेम - रस - मय कृष्णेर स्वरूप ।
ताँर शक्ति ताँर सह हय एक - रूप ॥86॥
 
अनुवाद
अथवा, "कृष्णमयी" का अर्थ यह है कि वह भगवान कृष्ण के समान हैं, क्योंकि वह प्रेम-रस की प्रतिमूर्ति हैं। भगवान कृष्ण और उनकी शक्ति में कोई भेद नहीं है।
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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