श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 1: आदि लीला  »  अध्याय 4: श्री चैतन्य महाप्रभु के प्राकट्य के गुह्य कारण  »  श्लोक 78
 
 
श्लोक  1.4.78 
লক্ষ্মী-গণ তাঙ্র বৈভব-বিলাসাṁশ-রূপ
মহিষী-গণ বৈভব-প্রকাশ-স্বরূপ
लक्ष्मी - गण ताँर वैभव - विलासांश - रूप ।
महिषी - गण वैभव - प्रकाश - स्वरूप ॥78॥
 
अनुवाद
लक्ष्मियाँ उनकी पूर्ण अंश हैं और वे वैभवविलास की विविधताओं को दर्शाती हैं। रानियाँ उनके वैभव के प्रकाश के रूप हैं।
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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