श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 1: आदि लीला  »  अध्याय 4: श्री चैतन्य महाप्रभु के प्राकट्य के गुह्य कारण  »  श्लोक 72
 
 
श्लोक  1.4.72 
আনন্দ-চিন্ময-রস-প্রতিভাবিতাভিস্
তাভির্ য এব নিজ-রূপতযা কলাভিঃ
গোলোক এব নিবসত্য্ অখিলাত্ম-ভূতো
গোবিন্দম্ আদি-পুরুষṁ তম্ অহṁ ভজামি
आनन्द - चिन्मय - रस - प्रतिभाविताभिस् ताभिर्य एव निज - रूपतया कलाभिः ।
गोलोक एव निवसत्यखिलात्म - भूतो गोविन्दमादि - पुरुषं तमहं भजामि ॥72॥
 
अनुवाद
मैं उस आदि भगवान गोविन्द की पूजा करता हूँ, जो गोरे रंग वाले, कमल के फूल जैसे नेत्रों वाले और पीताम्बर धारण करने वाले हैं। वे गोलोक में निवास करते हैं, जो उनका अपना धाम है। उनकी प्रियतमा राधा हैं, जो उनकी आध्यात्मिक शक्ति का साकार रूप हैं। वह भी उन्हीं की तरह रूपवती और गुणवती हैं। उनकी संगिनी राधा की सखियाँ हैं, जो उनके शरीर का ही विस्तार हैं। वे सदा आनंदमय आध्यात्मिक रस में निमग्न रहती हैं।
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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