श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 1: आदि लीला  »  अध्याय 4: श्री चैतन्य महाप्रभु के प्राकट्य के गुह्य कारण  »  श्लोक 70
 
 
श्लोक  1.4.70 
তযোর্ অপ্য্ উভযোর্ মধ্যে
রাধিকা সর্বথাধিকা
মহাভাব-স্বরূপেযṁ
গুণৈর্ অতিবরীযসী
तयोरप्युभयोर्मध्ये राधिका सर्वथाधिका ।
महाभाव - स्वरूपेयं गुणैरतिवरीयसी ॥70॥
 
अनुवाद
"इन दोनों गोपियों (राधारानी और चन्द्रावली) में से श्रीमती राधारानी हर प्रकार से श्रेष्ठ हैं। वो महाभाव की मूर्ति हैं और सद्गुणों में सबसे सर्वश्रेष्ठ हैं।"
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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