श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 1: आदि लीला  »  अध्याय 4: श्री चैतन्य महाप्रभु के प्राकट्य के गुह्य कारण  »  श्लोक 62
 
 
श्लोक  1.4.62 
আনন্দাṁশে হ্লাদিনী, সদ্-অṁশে সন্ধিনী
চিদ্-অṁশে সম্বিত্ — যারে জ্ঞান করি’ মানি
आनन्दांशे ह्लादिनी, सदंशे सन्धिनी ।
चिदंशे सम्वित् - यारे ज्ञान क रि’ मानि ॥62॥
 
अनुवाद
ह्लादिनी उनका आनंद का पक्ष है, सन्धिनी उनके अनन्त अस्तित्व का और सम्वित चेतना का पक्ष है, जिसे ज्ञान के रूप में भी स्वीकार किया जाता है।
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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