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श्लोक 1.4.57  |
সেই দুই এক এবে চৈতন্য গোসাঞি
রস আস্বাদিতে দোঙ্হে হৈলা এক-ঠাঙি |
सेइ दुइ एक एबे चैतन्य गोसाञि ।
रस आस्वादिते दोंहे हैला एक - ठाङि ॥57॥ |
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अनुवाद |
अब वे रस का आनंद लेने के लिए श्री चैतन्य महाप्रभु के रूप में एक शरीर में प्रकट हुए हैं। |
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