श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 1: आदि लीला  »  अध्याय 4: श्री चैतन्य महाप्रभु के प्राकट्य के गुह्य कारण  »  श्लोक 57
 
 
श्लोक  1.4.57 
সেই দুই এক এবে চৈতন্য গোসাঞি
রস আস্বাদিতে দোঙ্হে হৈলা এক-ঠাঙি
सेइ दुइ एक एबे चैतन्य गोसाञि ।
रस आस्वादिते दोंहे हैला एक - ठाङि ॥57॥
 
अनुवाद
अब वे रस का आनंद लेने के लिए श्री चैतन्य महाप्रभु के रूप में एक शरीर में प्रकट हुए हैं।
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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