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श्लोक 1.4.47  |
পরকীযা-ভাবে অতি রসের উল্লাস
ব্রজ বিনা ইহার অন্যত্র নাহি বাস |
परकीया - भावे अति रसेर उल्लास ।
व्रज विना इहार अन्यत्र नाहि वास ॥47॥ |
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अनुवाद |
परकीया प्रेम भाव में रस बहुत अधिक बढ़ जाता है। ऐसा प्रेम व्रज के अतिरिक्त और कहीं नहीं मिलता। |
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