श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 1: आदि लीला  »  अध्याय 4: श्री चैतन्य महाप्रभु के प्राकट्य के गुह्य कारण  »  श्लोक 232
 
 
श्लोक  1.4.232 
অতএব কহি কিছু করিঞা নিগূঢ
বুঝিবে রসিক ভক্ত, না বুঝিবে মূঢ
अतएव कहि किछु करिजा निगूढ़ ।
बुझिबे रसिक भक्त, ना बुझिबे मूढ़ ॥232॥
 
अनुवाद
अतः मैं केवल उनका सार प्रकट करूँगा, जिससे रसिक भक्त इन्हें समझ लें, किन्तु जो मूर्ख हैं, वे समझ न सकें।
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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