वेदामृत
Reset
Home
ग्रन्थ
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
श्रीमद् भगवद गीता
______________
श्री विष्णु पुराण
श्रीमद् भागवतम
______________
श्रीचैतन्य भागवत
वैष्णव भजन
About
Contact
श्री चैतन्य चरितामृत
»
लीला 1: आदि लीला
»
अध्याय 4: श्री चैतन्य महाप्रभु के प्राकट्य के गुह्य कारण
»
श्लोक 232
श्लोक
1.4.232
অতএব কহি কিছু করিঞা নিগূঢ
বুঝিবে রসিক ভক্ত, না বুঝিবে মূঢ
अतएव कहि किछु करिजा निगूढ़ ।
बुझिबे रसिक भक्त, ना बुझिबे मूढ़ ॥232॥
अनुवाद
अतः मैं केवल उनका सार प्रकट करूँगा, जिससे रसिक भक्त इन्हें समझ लें, किन्तु जो मूर्ख हैं, वे समझ न सकें।
✨ ai-generated
Connect Form
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
© copyright 2025 vedamrit. All Rights Reserved.