श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 1: आदि लीला  »  अध्याय 4: श्री चैतन्य महाप्रभु के प्राकट्य के गुह्य कारण  »  श्लोक 188
 
 
श्लोक  1.4.188 
তাঙ্ সবার নাহি নিজ-সুখ-অনুরোধ
তথাপি বাঢযে সুখ, পডিল বিরোধ
ताँ सबार नाहि निज - सुख - अनुरोध ।
तथापि बाढ़ये सुख, पड़िल विरोध ॥188॥
 
अनुवाद
गोपियों को अपना सुख पाने की इच्छा नहीं है, फिर भी उनके आनंद में वृद्धि होती है। यह वास्तव में एक विरोधाभास है।
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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