श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 1: आदि लीला  »  अध्याय 4: श्री चैतन्य महाप्रभु के प्राकट्य के गुह्य कारण  »  श्लोक 172
 
 
श्लोक  1.4.172 
অতএব গোপী-গণের নাহি কাম-গন্ধ
কৃষ্ণ-সুখ লাগি মাত্র, কৃষ্ণ সে সম্বন্ধ
अतएव गोपी - गणेर नाहि काम - गन्ध ।
कृष्ण - सुख लागि मात्र, कृष्ण से सम्बन्ध ॥172॥
 
अनुवाद
गोपियों के प्रेम में काम का कोई लेशमात्र भी दोष नहीं है। कृष्ण के साथ उनका संबंध केवल उसके आनंद के लिए है।
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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