श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 1: आदि लीला  »  अध्याय 4: श्री चैतन्य महाप्रभु के प्राकट्य के गुह्य कारण  »  श्लोक 171
 
 
श्लोक  1.4.171 
অতএব কাম-প্রেমে বহুত অন্তর
কাম — অন্ধ-তমঃ, প্রেম — নির্মল ভাস্কর
अतएव काम - प्रेमे बहुत अन्तर ।
काम - अन्ध - तमः, प्रेम - निर्मल भास्कर ॥171॥
 
अनुवाद
इसलिए वासना और प्यार बिल्कुल अलग हैं। वासना घने अंधेरे की तरह है, लेकिन प्यार चमकते सूरज की तरह है।
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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