श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 1: आदि लीला  »  अध्याय 4: श्री चैतन्य महाप्रभु के प्राकट्य के गुह्य कारण  »  श्लोक 17
 
 
श्लोक  1.4.17 
ঐশ্বর্য-জ্ঞানেতে সব জগত্ মিশ্রিত
ঐশ্বর্য-শিথিল-প্রেমে নহি মোর প্রীত
ऐश्वर्य - ज्ञानेते सब जगत्मिश्रित ।
ऐश्वर्य - शिथिल - प्रेमे नाहि मोर प्रीत ॥17॥
 
अनुवाद
(भगवान् कृष्ण ने सोचा:) "सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड मेरे प्रभाव से भरा हुआ है, लेकिन उस प्रभाव से कमजोर हुआ प्यार मुझे संतुष्ट नहीं करता।"
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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