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श्लोक 1.4.165  |
আত্মেন্দ্রিয-প্রীতি-বাঞ্ছা — তারে বলি ‘কাম’
কৃষ্ণেন্দ্রিয-প্রীতি-ইচ্ছা ধরে ‘প্রেম’ নাম |
आत्मेन्द्रिय - प्रीति - वाञ्छा - तारे ब लि’काम’ ।
कृष्णेन्द्रिय - प्रीति - इच्छा धरे ‘प्रेम’ नाम ॥165॥ |
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अनुवाद |
अपनी इन्द्रियों की तृप्ति की इच्छा काम है, किन्तु श्रीकृष्ण की इन्द्रियों को सुख देने की इच्छा प्रेम है। |
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