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श्लोक 1.4.150  |
অতৃপ্ত হ-ইযা করে বিধির নিন্দন
অবিদগ্ধ বিধি ভাল না জানে সৃজন |
अतृप्त हइया करे विधिर निन्दन ।
अविदग्ध विधि भाल ना जाने सृजन ॥150॥ |
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अनुवाद |
ऐसा व्यक्ति फलों से तृप्त न होकर ब्रह्माजी को बुरा-भला कहने लगता है और कहता है कि उन्हें अच्छे से सृजन करना नहीं आता और वे बिल्कुल अनुभवहीन हैं। |
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