श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 1: आदि लीला  »  अध्याय 4: श्री चैतन्य महाप्रभु के प्राकट्य के गुह्य कारण  »  श्लोक 150
 
 
श्लोक  1.4.150 
অতৃপ্ত হ-ইযা করে বিধির নিন্দন
অবিদগ্ধ বিধি ভাল না জানে সৃজন
अतृप्त हइया करे विधिर निन्दन ।
अविदग्ध विधि भाल ना जाने सृजन ॥150॥
 
अनुवाद
ऐसा व्यक्ति फलों से तृप्त न होकर ब्रह्माजी को बुरा-भला कहने लगता है और कहता है कि उन्हें अच्छे से सृजन करना नहीं आता और वे बिल्कुल अनुभवहीन हैं।
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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