श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 1: आदि लीला  »  अध्याय 4: श्री चैतन्य महाप्रभु के प्राकट्य के गुह्य कारण  »  श्लोक 15-16
 
 
श्लोक  1.4.15-16 
প্রেম-রস-নির্যাস করিতে আস্বাদন
রাগ-মার্গ ভক্তি লোকে করিতে প্রচারণ
রসিক-শেখর কৃষ্ণ পরম-করুণ
এই দুই হেতু হৈতে ইচ্ছার উদ্গম
प्रेम - रस - निय़स करिते आस्वादन ।
राग - मार्ग भक्ति लोके करिते प्रचारण ॥15॥
रसिक - शेखर कृष्ण परम - करुण ।
एइ दुइ हेतु हैते इच्छार उद्गम ॥16॥
 
अनुवाद
भगवान के अवतार लेने की इच्छा दो कारणों से थी - वे भगवत्प्रेम रस के माधुर्य का आनंद लेना चाहते थे और दुनिया में भक्ति का प्रसार करना चाहते थे, जिसमें लोग स्वतः ही आकर्षित हों। इसलिए उन्हें परम प्रफुल्लित और सबसे दयालु कहा जाता है।
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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