श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 1: आदि लीला  »  अध्याय 4: श्री चैतन्य महाप्रभु के प्राकट्य के गुह्य कारण  »  श्लोक 141
 
 
श्लोक  1.4.141 
আমার মাধুর্য নাহি বাঢিতে অবকাশে
এ-দর্পণের আগে নব নব রূপে ভাসে
आमार माधुर्य नाहि बाढ़िते अवकाशे ।
ए - दर्पणेर आगे नव नव रूपे भासे ॥141॥
 
अनुवाद
"मेरी मिठास में फैलने की गुंजाइश नहीं है, फिर भी वह दर्पण के सामने हमेशा नए-नए सौंदर्य के साथ चमकता है।"
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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