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श्लोक 1.4.130  |
যাহা হৈতে সুনির্মল দ্বিতীয নাহি আর
তথাপি সর্বদা বাম্য-বক্র-ব্যবহার |
याहा हैते सुनिर्मल द्वितीय नाहि आर ।
तथापि सर्वदा वाम्य - वक्र - व्यवहार ॥130॥ |
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अनुवाद |
उसके प्यार से बढ़कर शुद्ध और कुछ नहीं है, पर उसका व्यवहार हमेशा उल्टा और टेढ़ा रहता है। |
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