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श्लोक 1.4.129  |
যাহা ব-ই গুরু বস্তু নাহি সুনিশ্চিত
তথাপি গুরুর ধর্ম গৌরব-বর্জিত |
याहा वइ गुरु वस्तु नाहि सुनिश्चित ।
तथापि गुरुर धर्म गौरव - वर्जित ॥129॥ |
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अनुवाद |
निःसंदेह उसके प्यार से बढ़कर कुछ भी नहीं है। पर उसका प्यार अहंकार से रहित है। यही उसकी महानता का प्रतीक है। |
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