श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 1: आदि लीला  »  अध्याय 4: श्री चैतन्य महाप्रभु के प्राकट्य के गुह्य कारण  »  श्लोक 118
 
 
श्लोक  1.4.118 
হরির্ এষ ন চেদ্ অবাতরিষ্যন্
মথুরাযাṁ মধুরাক্ষি রাধিকা চ
অভবিষ্যদ্ ইযṁ বৃথা বিসৃষ্টির্
মকরাঙ্কস্ তু বিশেষতস্ তদাত্র
हरिरेष न चेदवातरिष्यन् मथुरायां मधुराक्षि राधिका च ।
अभविष्यदियं वृथा विसृष्टिर मकराङ्कस्तु विशेषतस्तदात्र ॥118॥
 
अनुवाद
हे पौर्णमासी, जर भगवान हरी श्रीमती राधारानी संग न आते मथुरा में, तो यह सब सृष्टि और कामादेव भी काम के न रहते।
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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