श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 1: आदि लीला  »  अध्याय 3: श्री चैतन्य महाप्रभु के प्राकट्य के बाह्य कारण  »  श्लोक 57
 
 
श्लोक  1.3.57 
দেহ-কান্ত্যে হয তেঙ্হো অকৃষ্ণ-বরণ
অকৃষ্ণ-বরণে কহে পীত-বরণ
देह - कान्त्ये हय तेंहो अकृष्ण - वरण ।
अकृष्ण - वरणे कहे पीत - वरण ॥57॥
 
अनुवाद
उनका रंग काला तो बिल्कुल नहीं है। वे काले नहीं हैं, जिससे यह पता चलता है कि उनका रंग पीला है।
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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