श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 1: आदि लीला  »  अध्याय 3: श्री चैतन्य महाप्रभु के प्राकट्य के बाह्य कारण  »  श्लोक 54
 
 
श्लोक  1.3.54 
‘কৃষ্ণ’ এই দুই বর্ণ সদা যাঙ্র মুখে
অথবা, কৃষ্ণকে তিঙ্হো বর্ণে নিজ সুখে
‘कृष्ण’ एइ दुइ वर्ण सदा याँर मुखे ।
अथवा, कृष्णके तिंहो वर्णे निज सुखे ॥54॥
 
अनुवाद
उनके मुँह से ‘कृष्’ तथा ‘ण’ ये दो अक्षर हमेशा निकलते रहते हैं; या फिर, वे बड़े आनंद से लगातार कृष्ण का वर्णन करते रहते हैं।
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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