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श्लोक 1.3.51  |
ইতি দ্বাপর উর্ব্-ঈশ
স্তুবন্তি জগদ্-ঈশ্বরম্
নানা-তন্ত্র-বিধানেন
কলাব্ অপি যথা শৃণু |
इति द्वापर उर्वीश स्तुवन्ति जगदीश्वरम् ।
नाना - तन्त्र - विधानेन कलावपि यथा शृणु ॥51॥ |
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अनुवाद |
हे राजन, जिस प्रकार द्वापर युग में लोगों ने ब्रह्मांड के स्वामी की पूजा की। उसी प्रकार वे कलियुग में भी शास्त्रों की बताई हुई विधि से परम पुरुषोत्तम भगवान की पूजा करते हैं। अब आप कृपया मुझसे यह सब सुनें। |
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