श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 1: आदि लीला  »  अध्याय 3: श्री चैतन्य महाप्रभु के प्राकट्य के बाह्य कारण  »  श्लोक 43
 
 
श्लोक  1.3.43 
‘ন্যগ্রোধ-পরিমণ্ডল’ হয তাঙ্র নাম
ন্যগ্রোধ-পরিমণ্ডল-তনু চৈতন্য গুণ-ধাম
‘न्यग्रोध - परिमण्डल’ हय ताँर नाम ।
न्यग्रोध - परिमण्डल - तनु चैतन्य गुण - धाम ॥43॥
 
अनुवाद
ऐसे व्यक्ति को "न्यग्रोध परिमंडल" कहा जाता है। सर्वगुण संपन्न श्री चैतन्य महाप्रभु का शरीर न्यग्रोध परिमंडल के समान है।
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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