युग - धर्म प्रवर्ताइमु नाम - सङ्कीर्तन ।
चारि भाव - भक्ति दिया नाचामु भुवन ॥19॥
अनुवाद
"मैं निजी तौर पर युगधर्म का प्रवर्तन करूंगा - नाम-संकीर्तन, पवित्र नाम का सामूहिक कीर्तन। मैं संसार को प्रेममयी भक्ति के चारों रसों की प्राप्ति कराकर उसकी गहराइयों में डूबने के लिए प्रेरित करूंगा, जिससे वो परमानंद से नृत्य करेगा।"