श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 1: आदि लीला  »  अध्याय 3: श्री चैतन्य महाप्रभु के प्राकट्य के बाह्य कारण  »  श्लोक 18
 
 
श्लोक  1.3.18 
সার্ষ্টি, সারূপ্য, আর সামীপ্য, সালোক্য
সাযুজ্য না লয ভক্ত যাতে ব্রহ্ম-ঐক্য
सार्टि, सारूप्य, आर सामीप्य, सालोक्य ।
सायुज्य ना लय भक्त याते ब्रह्म - ऐक्य ॥18॥
 
अनुवाद
“ये मुक्तियाँ हैं - सार्ष्टि (भगवान् के समान वैभव की प्राप्ति), सारूप्य (भगवान् के रूप जैसा रूप प्राप्त करना), सामीप्य (भगवान् के निकट रहना) और सालोक्य (वैकुण्ठ ग्रह में रहना)। भक्तगण सायुज्य मुक्ति को स्वीकार नहीं करते, क्योंकि यह ब्रह्म के साथ एकरूपता है।”
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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