श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 1: आदि लीला  »  अध्याय 3: श्री चैतन्य महाप्रभु के प्राकट्य के बाह्य कारण  »  श्लोक 102
 
 
श्लोक  1.3.102 
আনিযা কৃষ্ণেরে করোঙ্ কীর্তন সঞ্চার
তবে সে ‘অদ্বৈত’ নাম সফল আমার
आनिया कृष्णेरे करों कीर्तन सञ्चार ।
तबे से ‘अद्वैत’ नाम सफल आमार ॥102॥
 
अनुवाद
यदि मैं कृष्ण को पवित्र नाम संकीर्तन आंदोलन आरंभ करने के लिए प्रेरित कर पाऊँगा तभी मेरा ‘अद्वैत’ नाम सफल होगा।
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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