श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 1: आदि लीला  »  अध्याय 2: पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान् श्री चैतन्य महाप्रभु  »  श्लोक 97
 
 
श्लोक  1.2.97 
কৃষ্ণের স্বরূপের হয ষড্-বিধ বিলাস
প্রাভব-বৈভব-রূপে দ্বি-বিধ প্রকাশ
कृष्णेर स्वरूपेर हय षड् - विध विलास ।
प्राभव - वैभव - रूपे द्वि - विध प्रकाश ॥97॥
 
अनुवाद
श्री कृष्ण भगवान व्यक्ति छह प्राथमिक विस्तारों में आनंद लेते हैं। उनकी दो अभिव्यक्तियाँ प्रभव और वैभव हैं।
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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