श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 1: आदि लीला  »  अध्याय 2: पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान् श्री चैतन्य महाप्रभु  »  श्लोक 95
 
 
श्लोक  1.2.95 
দশমে দশমṁ লক্ষ্যম্
আশ্রিতাশ্রয-বিগ্রহম্
শ্রী-কৃষ্ণাখ্যṁ পরṁ ধাম
জগদ্-ধাম নমামি তত্
दशमे दशमं लक्ष्यमाश्रिताश्रय - विग्रहम् ।
श्री - कृष्णाख्यं परं धाम जगद्धाम नमामि तत् ॥95॥
 
अनुवाद
श्रीमद्भागवत का दसवाँ स्कन्ध दसवें उद्देश्य, श्रीकृष्ण भगवान् को प्रकट करता है, जो समस्त शरणागत जीवों के आश्रयदाता हैं और सारे ब्रह्माण्डों के परम स्रोत हैं। मैं उन्हें नमन करता हूँ।
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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