श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 1: आदि लीला  »  अध्याय 2: पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान् श्री चैतन्य महाप्रभु  »  श्लोक 67
 
 
श्लोक  1.2.67 
এতে চাṁশ-কলাঃ পুṁসঃ
কৃষ্ণস্ তু ভগবান্ স্বযম্
ইন্দ্রারি-ব্যাকুলṁ লোকṁ
মৃডযন্তি যুগে যুগে
एते चांश - कलाः पुंसः कृष्णस्तु भगवान्स्वयम् ।
इन्द्रारि - व्याकुलं लोकं मृड़यन्ति युगे युगे ॥67॥
 
अनुवाद
ये समस्त अवतार भगवान के पूर्ण विस्तार या पूर्ण विस्तारों के अंश हैं। किंतु कृष्ण स्वयं पूर्ण ईश्वर हैं। प्रत्येक युग में जब-जब इंद्र के शत्रु संसार को व्यथित करते हैं, तब-तब वे अपने विविध रूपों के माध्यम से संसार की रक्षा करते हैं।
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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