श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 1: आदि लीला  »  अध्याय 2: पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान् श्री चैतन्य महाप्रभु  »  श्लोक 101
 
 
श्लोक  1.2.101 
চিচ্-ছক্তি, স্বরূপ-শক্তি, অন্তরঙ্গা নাম
তাহার বৈভব অনন্ত বৈকুণ্ঠাদি ধাম
चिच्छक्ति, स्वरूप - शक्ति, अन्तरङ्गा नाम ।
ताहार वैभव अनन्त वैकुण्ठादि धाम ॥101॥
 
अनुवाद
चित् - शक्ति, जिसे स्वरूप - शक्ति या अंतर्यामी शक्ति भी कहा जाता है, कई अलग-अलग रूपों में प्रदर्शित होती है। यह भगवान के राज्य और उसके वैभव को बनाए रखती है।
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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