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श्लोक 85
श्लोक
1.17.85
অষ্ঠি-বল্কল নাহি, — অমৃত-রসময
এক ফল খাইলে রসে উদর পূরয
अष्ठि - वल्कल नाहि , - अमृत - रसमय ।
एक फल खाइले रसे उदर पूरय ॥85॥
अनुवाद
फलों में गुठली या छिलका नहीं था। वे सभी अमृत के समान मीठे रस से भरे थे और इतने स्वादिष्ट थे कि एक ही फल खाने से आदमी का पेट भर जाता था।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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