श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 1: आदि लीला  »  अध्याय 17: चैतन्य महाप्रभु की युवावस्था की लीलाएँ  »  श्लोक 59
 
 
श्लोक  1.17.59 
তবে বিপ্র ল-ইল আসি শ্রীবাস শরণ
তাঙ্হার কৃপায হৈল পাপ-বিমোচন
तबे विप्र लइल आसि श्रीवास शरण ।
ताँहार कृपाय हैल पाप - विमोचन ॥59॥
 
अनुवाद
तब वह ब्राह्मण गोपाल चापाल श्रीवास ठाकुर के समीप गया और उनके चरण-कमलों की शरण ली और श्रीवास ठाकुर की कृपा से वह सभी पापों के कर्मों से मुक्त हो गया।
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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