श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 1: आदि लीला  »  अध्याय 17: चैतन्य महाप्रभु की युवावस्था की लीलाएँ  »  श्लोक 4
 
 
श्लोक  1.17.4 
বিদ্যা-সৌন্দর্য-সদ্-বেশ-
সম্ভোগ-নৃত্য-কীর্তনৈঃ
প্রেম-নাম-প্রদানৈশ্ চ
গৌরো দীব্যতি যৌবনে
विद्या - सौन्दर्य - सद्वेश - सम्भोग - नृत्य - कीर्तनैः ।
प्रेम - नाम - प्रदानैश्च गौरो दीव्यति यौवने ॥4॥
 
अनुवाद
अपनी महान विद्वता, अद्भुत सौंदर्य और सुन्दर वेशभूषा का प्रदर्शन करते हुए भगवान चैतन्य महाप्रभु ने नृत्य किया, संकीर्तन किया और सोए हुए कृष्ण-प्रेम को जगाने के लिए भगवान के पवित्र नाम का वितरण किया। इस प्रकार भगवान श्री गौरसुंदर अपने युवाकालीन लीलाओं में चमके।
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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