श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 1: आदि लीला  »  अध्याय 17: चैतन्य महाप्रभु की युवावस्था की लीलाएँ  »  श्लोक 330
 
 
श्लोक  1.17.330 
বৃন্দাবন-দাস ইহা ‘চৈতন্য-মঙ্গলে’
বিস্তারি’ বর্ণিলা নিত্যানন্দ-আজ্ঞা-বলে
वृन्दावन - दास इहा ‘चैतन्य - मङ्गले’ ।
विस्ता रि’ वणिला नित्यानन्द - आज्ञा - बले ॥330॥
 
अनुवाद
श्री नित्यानन्द प्रभु के कहने और उनकी शक्ति से श्रील वृंदावन दास ठाकुर ने अपने ग्रंथ चैतन्य - मंगल में उन सब विषयों को विस्तार से बताया है, जिनका वर्णन मैंने नहीं किया।
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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