श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 1: आदि लीला  »  अध्याय 17: चैतन्य महाप्रभु की युवावस्था की लीलाएँ  »  श्लोक 275
 
 
श्लोक  1.17.275 
যশোদা-নন্দন হৈলা শচীর নন্দন
চতুর্-বিধ ভক্ত-ভাব করে আস্বাদন
यशोदा - नन्दन हैला शचीर नन्दन ।
चतुर्विध भक्त - भाव करे आस्वादन ॥275॥
 
अनुवाद
माता शची के लाल और माता यशोदा के लाल तो बस पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान के अलग-अलग अवतार हैं, जो अब चार तरह की भक्ति का आनंद ले रहे हैं।
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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