श्री चैतन्य चरितामृत » लीला 1: आदि लीला » अध्याय 17: चैतन्य महाप्रभु की युवावस्था की लीलाएँ » श्लोक 208 |
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| | श्लोक 1.17.208  | না জানি, — কি খাঞা মত্ত হঞা নাচে, গায
হাসে, কান্দে, পডে, উঠে, গডাগডি যায | ना जानि , - कि खाजा मत्त ह ञा नाचे, गाय ।
हासे, कान्दे, पड़े, उठे, गड़ागड़ि याय ॥208॥ | | अनुवाद | हमें नहीं पता कि वह क्या खाता है, जिससे पागल होकर नाचता, गाता, कभी हँसता, रोता, गिरता, कूदता और ज़मीन पर लोटने लगता है। | | |
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