श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 1: आदि लीला  »  अध्याय 17: चैतन्य महाप्रभु की युवावस्था की लीलाएँ  »  श्लोक 196
 
 
श्लोक  1.17.196 
তবে সেই যবনেরে আমি ত’ পুছিল
হিন্দু ‘হরি’ বলে, তার স্বভাব জানিল
तबे सेइ यवनेरे आमि त’ पुछिल ।
हिन्दु ‘हरि’ बले, तार स्वभाव जानिल ॥196॥
 
अनुवाद
तब मैंने इन यवनों से पूछा, ‘मैं जानता हूँ कि ये हिन्दू अपनी प्रकृति के कारण “हरि, हरि” का उच्चारण करते हैं।
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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