श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 1: आदि लीला  »  अध्याय 17: चैतन्य महाप्रभु की युवावस्था की लीलाएँ  »  श्लोक 19
 
 
श्लोक  1.17.19 
বরাহ-আবেশ হৈলা মুরারি-ভবনে
তাঙ্র স্কন্ধে চডি’ প্রভু নাচিলা অঙ্গনে
वराह - आवेश हैला मुरारि - भवने ।
ताँर स्कन्धे च ड़ि’ प्रभु नाचिला अङ्गने ॥19॥
 
अनुवाद
एक दिवस श्री चैतन्य महाप्रभु को वराह-अवतार की भावावेश ने जकड़ लिया, तो वे मुरारि गुप्त के कंधों पर चढ़ गए। तब मुरारि गुप्त के आँगन में दोनों नाचने लगे।
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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