शुनि’ स्तब्ध हैल काजी, नाहि स्फुरे वाणी ।
विचारिया कहे काजी पराभव मा नि’ ॥168॥
अनुवाद
श्री चैतन्य महाप्रभु के इन बयानों को सुनकर, काजी के तर्क स्तब्ध हो गए और वह कोई और शब्द नहीं बोल सका। इस तरह, पूरी तरह विचार करने के बाद, काजी ने हार मान ली और इस प्रकार बोला।